जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में अहंकार

जय भूरा भगत

जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में अहंकार एक प्रबल शत्रु हैं क्योंकि सभी भेद अंहभावना से ही उत्पन होते हैं, जिसके उत्पन ही काम, क्रोध, लोभ और मोह आदि विकार उठ खड़े होते हैं। इन्हें बाहर से बुलाना नहीं पड़ता। अंहकार स्वतः भेद-बुद्धि के प्रसंग से इन्हें अंतःकरण में पैदा कर देता है। मनुष्य परिस्थिति को दोषी करार ठहराता है या किसी किसी दूसरे व्यक्ति के मत्थे दोष मढ़ने का प्रयास करता हैं, किंतु यह दोष अपने अहंकार का है, जो अन्य विकारों की तरह आपको साधन भ्रष्ट बना देता है। अतः आप इसे ही मारने का प्रयत्न करें।

अहंकार को खत्म करने में मनुष्य को सर्वप्रथम तत्पर होना चाहिए क्योंकि यही सारे अनर्थो का मूल है।

रावण की शक्तियों का कुछ ठिकाना नहीं था, दुर्योधन, शिशुपाल, नेपोलियन और हिटलर की शक्तियों के आगे संसार कांपता था, कंस का बल और पराक्रम भी जगत विख्यात था, किंतु उनका अहंकार ही उन्हें खा गया।

मनुष्य को पतन की ओर ले जाने मे अहंकार का ही हाथ रहता है। श्रेय के साधक को इससे दूर ही रहना चाहिए। भगवान सबसे पहले अभिमान ही खत्म करते हैं। अहंकारी व्यक्ति को कभी भी उनका प्रकाश नहीं मिलता।

अहंकार एक प्रकार की संग्रह वृत्ति है।

अहं के योग से मनुष्य संसार की प्रत्येक वस्तु पर अपना एकाधिकार चाहता है। उसका लाभ वह अकेले ही उठाना चाहता है। किसी दूसरे को हस्तक्षेप करते या लाभ उठाते देख वह जलने लगता है और प्रतिकार के लिए तैयार हो जाता है।

आज दिन शनिवार दिनांक 6/4/2019 विक्रम संवत् 2076 हिन्दू नव वर्ष की सभी साथी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं व बधाइयाँ ।

मात रानी आप सभी की सारी मनोकामनाएं पूरी करें।

जय माता दी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *